Monday, April 15, 2013

KGTE Typewriting Hindi - Model Question Paper - Speed (Lower & Higher)


केरल की चित्रकला
प्राचीन काल में जब से केरल की पर्वतीय गुफाओं में मनुष्य निवास करने लगे थे तभी से चित्रकला की परंपरा आरंभ हुई होगी । प्राचीन गुफाओं के चित्रांकन इसका प्रमाण हैं । इस प्रकार के चित्र जिन गुफाओं में उपलब्ध हैं वे हैं वयनाड की एडक्कल गुफा, इडुक्कि में मरयूर की एष़ुत्ताले गुफा, तिरुवनन्तपुरम के पेरुंकडविलयिल की पाण्डवन पारा गुफा (यह गुफा पत्थर के खनन के कारण अब नष्ट हो गयी) आदि। कोल्लम जिले के तेन्मला की चन्तरुणिवन गुफा में भी गुफाचित्र मिलते हैं । इन चित्रों में प्रधान हैं - पत्थर की दीवारों पर उत्कीर्ण किए गुफा चित्र और शिला चित्र

एडक्कल गुफा वयनाड के अंपलवयल के पास अंपुकुत्ति पहाडी पर स्थित है। यहाँ गुफा - भित्तियों पर उकेरे गये अतिप्राचीन चित्र मिलते हैं । अधिकांश चित्र पौन इंच से एक इंच तक चौडाई और एक इंच गहराई लिए हैं । चित्रों में मनुष्य की आकृतियाँ अनुष्ठान कलापरक नृत्य करते हुए उकेरी गई हैं । लगभग सभी मानव आकृतियों में पत्तों से बनाये केशालंकार दिखाई देते हैं । साथ में हाथी, शिकारी कुत्ते, हिरण आदि पशुओं की आकृतियाँ भी हैं । इनके अतिरिक्त ज्यामितीय आकार भी अंकित किये गये हैं । साथ ही धुरि सहित पहियों वाली गाडियाँ भी अंकित है । अनुमान है कि एडक्कल चित्र नवीन प्रस्तर युग में निर्मित किये गये हैं । [LOWER – 206]

तीवरि पर्वत के पुराप्पारा नामक पत्थर के द्वार पर भी इस प्रकार के चित्र हैं । यहाँ अस्त्र, कुष़िप्पारा आदि हथियारों एवं पक्षियों के चित्र भी दिखाई पड़ते हैं । मरयूर की एष़ुत्तालै नामक गुफा के चित्रों में हाथी, घोडा, जंगली भैंसा, हिरण आदि पशुओं के आकार और कतिपय अमूर्त चित्र भी हैं । एष़ुत्तालै के चित्र एक के ऊपर एक इस तरह से बनाये गये हैं, जिनसे प्रमाणित होता है कि ये चित्रकलाएँ विभिन्न युगों की है । भित्ति चित्र, अनुष्ठानपरक रंगोली चित्र, मुखौटे या मुख पर चित्रांकन आदि केरलीय चित्रकला के अन्य प्राचीन रूप हैं । भित्ति चित्रों को छोड शेष चित्र आज भी चित्रकला की परंपरा में जीवित है ।

केरल में काफी समय तक ऐसी चित्रकला का विकास नहीं हुआ जो धार्मिक अनुष्ठान से परे हो । यहॉ मात्र अनुष्ठान के एक भाग के रूप में ही चित्रकला को स्थान दिया जाता था । भित्ति-चित्र को इससे पृथक माना जा सकता है । [HIGHER – 354] किन्तु भित्ति चित्रों का विषय अधिकतर धार्मिक हुआ करता था । आधुनिक चित्रकला का आविर्भाव इस परंपरा से हटकर हुआ है । आधुनिक भारतीय चित्रकला का इतिहास केरल से प्रारंभ होता है । राजा रविवर्मा आधुनिक भारतीय चित्रकला के जनक माने जाते हैं, उन्हीं से आधुनिक केरलीय चित्रकला का इतिहास शुरू होता है । रविवर्मा ने तैलरंग नामक नये माध्यम, कैनवास नामक नये फलक दोनों का यथार्थ रूप में परिचय करवाया दिया । इज़तरह रविवर्मा के द्वारा चित्रकला के धर्मनिरपेक्ष संसार में केरल का प्रवेश हुआ । [435]

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